नए भारत की आवाज

दूरदर्शन (डीडी) को ऊर्जा देने की आवश्यकता है ताकि उसे नए भारत की आवाज बनाया जा सके, बता रहे हैं इंडिया इंक के संस्थापक और सीईओ मनोज लाडवा।

भारत का सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय शायद भारतीय राजनीति, प्रशासन और समाज में बीते जमाने का सबसे भटका हुआ प्रतीक है। जिस देश को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का गौरव हासिल है, उसमें ऐसे सरकारी विभाग और भारी भरकम अफसरशाही की कोई जरूरत ही नहीं है, जिनका नागरिकों और पूरी दुनिया को दी जाने वाली सूचना पर नियंत्रण रहता हो और जो उसकी निगरानी करते हों।

उप राष्ट्रपति पद के लिए भारतीय जनता पार्टी की ओर से वेंकैया नायडू का नामांकन होने के बाद सूचना-प्रसारण मंत्रालय की बागडोर उनके हाथ से लेकर धाकड़ राजनेता स्मृति ईरानी को दे दी गई, जो अभिनेत्री रह चुकी हैं और जिन्हें भारत की युवा पीढ़ी में से कई लोग अपना आदर्श मानते हैं। ईरानी को कपड़ा मंत्रालय के साथ इसका “स्वतंत्र प्रभार” दिया गया है। कपड़ा मंत्रालय विशेषकर रोजगार सृजन बढ़ाने के मोदी सरकार के प्रयासों को देखते हुए बहुत महत्वपूर्ण और रणनीतिक उद्योग है।

आदर्श स्थिति में ईरानी का निर्देश बहुत सीधा सा होना चाहिएः सोवियत युग की मानसिकता की बू देने वाले इस आदिम विभाग को बंद कर दिया जाए। लेकिन बदकिस्मती से हम आदर्श स्थिति में नहीं जी रहे हैं। इसलिए उन्हें चाहिए कि वे विभाग में सुधार करें और उसे खींचकर 21वीं सदी के बहादुर तथा नए भारत में ले आएं। आप जानना चाहते हैं कि भारतीय मीडिया में गलत क्या है? शाम 6 बजे से रात 10 बजे के बीच कोई भी समाचार चैनल चला लीजिए। आपको ऐसे मुद्दों पर “बहस” के नाम पर केवल और केवल धींगामुश्ती होती दिखेगी, जिन मुद्दों की आम आदमी के लिए कोई सरोकार ही नहीं है। अपनी रेटिंग बनाए रखने और कार्यक्रमों को मनोरंजक बनाने के लिए चैनल जानबूझकर उन वक्ताओं को बुलाते हैं, जो विवादित विचारों के लिए जाने जाते हैं या जो अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ खुलेआम जहर उगलते हैं। उसके बाद चीखने-चिल्लाने के मुकाबलों का बड़ा तमाशा होता है और गरमागरमी भी होती है, लेकिन अंत में दर्शकों को उस मुद्दे पर कोई भी नई जानकारी नहीं मिल पाती है।

आप कहेंगे कि सूचना-प्रसारण मंत्रालय क्या कर सकता है क्योंकि वे निजी चैनल हैं, जो अपनी मर्जी से कुछ भी दिखाने के लिए स्वतंत्र हैं।

इसका जवाब सरकारी संस्था दूरदर्शन (डीडी) को सुधारने में छिपा है, जिसके पास ढेरों चैनल हैं और भारत भर में उसकी पहुंच सभी निजी चैनलों की कुल पहुंच से भी ज्यादा है। लेकिन प्रसारणकर्ता जिन शहरी दर्शकों के पीछे पड़े रहते हैं और जो विज्ञापन की भारी रकम दिलाते हैं, उनमें से ज्यादातर ने डीडी देखना छोड़ दिया है।

क्यों? क्योंकि डीडी के समसामयिक मामलों के चैनलों को कई वर्षों से केंद्र सरकार का प्रचार करने वाली मशीन से ज्यादा कुछ नहीं माना जाता है। और डीडी पर सामान्य मनोरंजन के किसी कार्यक्रम ने लोकप्रियता का शिखर दशकों पहले छुआ था। कारण ढूंढना मुश्किल नहीं है। कार्यक्रमों के ठेके देने में भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार होने के कारण टेलीविजन कार्यक्रमों के सबसे उम्दा निर्माता और निर्देशक निजी चैनलों के साथ काम करना पसंद करते हैं।

यदि ईरानी इस बदबूदार विभाग में झाड़ू चला पाईं और दशकों से राजनीतिक दखल के कारण होती आई गड़बड़ियां दूर कर दीं तो वह बड़ा असर छोड़ सकती हैं।

डीडी के समसामयिक विषयों के कार्यक्रमों को अगर वह संतुलन और तेवर दे पाती हैं और सामान्य मनोरंजन चैनलों को पेशेवर दृष्टिकोण दे पाती हैं तो सरकारी प्रसारणकर्ता को एक बार फिर दर्शक हासिल हो सकते हैं। और डीडी की पहुंच को देखते हुए सभी निजी चैनलों पर अपने कार्यक्रमों की गुणवत्ता सुधारने का दबाव पड़ सकता है।

चूंकि भारत के टीवी चैनल अभी स्वनियमन पर ही चलते हैं, इसीलिए सक्रिय और वास्तव में जनसेवा करने वाले डीडी का दबाव निजी चैनलों को सुधरने पर मजबूर कर देगा।

यह शर्म की बात है कि दुनिया भर को प्रभावित करने के लिए भारत के पास बीबीसी या अल जजीरा (हालांकि हाल में वह कुछ विवादों में रहा है) की तर्ज पर कोई भी वैश्विक प्लेटफॉर्म नहीं है।

सुधरा हुआ, स्वतंत्र, तेज-तर्रार और पेशेवर डीडी इस कमी को भर सकता है और वैश्विक भारतीयों की आवाज बन सकता है, जिसे अब दुनिया भर में राजधानियों और कंपनियों के मुख्यालयों में पूरे सम्मान के साथ सुना जा रहा है। इससे भारत की रचनात्मक प्रतिभा सामने आएगी और आगे जाकर वह विश्व के वैकल्पिक दृष्टिकोण के प्रसार का वैश्विक प्लेटफॉर्म भी बन सकता है। अच्छा होगा कि ईरानी प्रवासी भारतीय समुदाय में से बेहद सफल और प्रतिभाशाली मीडिया पेशेवरों को भी इस मुहिम में शामिल करें।

ईरानी के लिए आखिरी मुकाम तो कार्यकाल पूरा करना ही होगा। लेकिन आशा है कि वहां तक पहुंचने से पहले वह मील के कुछ ऐसे पत्थरों से होकर गुजरेंगी, जिनकी उम्मीद हमें है।